Maa Shailputri : नवरात्रि के पहले दिन पढ़े मां शैलपुत्री की कथा

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Maa Shailputri : नवरात्रि के पहले दिन पढ़े मां शैलपुत्री की कथा

 

आज से चैत्र नवरात्रि का आरंभ हो चुका है और आज नवरात्रि का पहला दिन है व इस दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। कहते हैं कि नवरात्रि के पूरे 9 दिनों तक मां के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जो लोग अपने घरों में पूरे नौ दिनों तक मां की आराधना करते हैं, माता का आशीर्वाद उन पर व उनके परिवार पर हमेशा बना रहता है। बहुत से लोग नवरात्रि के व्रत भी रखते हैं लेकिन जो लोग व्रत नहीं कर पाते वे केवल हर रोज कथा पढ़ लें या सुन लें तो ही उनके भाग्य खुल जाते हैं। चलिए जानते हैं आज पहले दिन मां शैलपुत्री की कथा। Maa Shailputri Katha

एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, लेकिन शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारण से हमसे नाराज हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, लेकिन हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना सही नहीं होगा।Maa Shailputri Katha
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शंकरजी के यह कहने से भी सती नहीं मानी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत दुख पहुंचा। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।

सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं।

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